गुरुवार, 13 सितंबर 2012

इमली कृष्ण थे बस्तर के आदिवासियों के लिए प्रवीर कृष्ण

भारतीय प्रशासनिक सेवा में रहकर गरीब और शहरीकरण से दूर रहने वाले वनवासियों एवं आदिवासियों के लिए कुछ करने की इच्छा रखने वाले आईएएस अधिकारी ने बस्तर कलेक्टर के रूप में वन-धन योजना शुरू की थी। इसका लाभ यह हुआ था कि जो गरीब आदिवासी अपनी आजीविका के लिए ब-मुश्किल कुछ ही रुपये कमाते थे, उनकी आय 7 से 8 गुना बढ़ गई थी। विभिन्न प्रतिभाओं के धनी इस आईएएस अफसर का नाम उस वक्त इमली कृष्ण के नाम से पुकारा जाने लगा था। आज भी जब इस योजना की चर्चा होती है तो उनका नाम सहज ही जुबान पर आ जाता हैं। हम बात कर रहे हैं, 1987 बैच के आईएएस अधिकारी प्रवीर कृष्ण की। उनसे चर्चा की हमारे विशेष संवाददाता राजेन्द्र धनोतिया ने। पेश हैं

चर्चा के मुख्य अंश-
सवाल- आपको बचपन से ही संगीत का शौक रहा। किस तरह का संगीत पसंद करते हैं?

जवाब- हां, मुझे शास्त्रीय संगीत और फिल्मी संगीत दोनों ही पसंद है। इण्डियन क्लासिकल म्युजिक में पंडित भीमसेन जोशी, उस्ताद आमिर खान, पं. रविशंकर को सुनना भाता हैं। इसी तरह पुराने फिल्मी गीत और गजलें भी सुनना पसंद हैं। इसमें किशोर कुमार, लता मंगेशकर, आशा भोसले, मो. रफी, जगजीत सिंह- चित्रा सिंह, गुलाम अली और मेंहदी हसन को सुनता हूं।

सवाल- आप पंडित डीबी पुलस्कर को सुनना और उनके गाये गीतों को गुनगुनाने
का शौक भी रखते हैं?

जवाब- स्वातं-सुखाय के लिए के लिए फैमिली फंक्शन और दोस्तों के बीच भजन एवं गजलें गाता हूं। मुझे पंडित डीबी पुलस्कर के गाये भजन ‘‘ठुमक चलत रामचन्द्र बाजत पैजनिया..’’  ‘‘पायो जी मैंने रामरतन धन पायो’’ और ‘‘जिनके हिय में सिया-राम बसे’’ विशेष रूप से पसंद हैं। ये ही भजन में गाता भी हूं। मुझे जगजीत सिंह की गजले गाना भी भाता हैं। वाद्य यंत्र तबला, हारमोनियम, बासुरी और माऊथ आर्गन भी बजा लेता हूं। 

सवाल- खेलों में क्या अच्छा लगता हैं, और क्या अब इसके लिए समय निकल पाते हैंं?
जवाब- मुझे कालेज के दिनों में क्रिकेट खेलना पंसद था। तब यूनिवर्सिटी लेवल तक खेला। वैसे टेबिल-टेनिस, बैंडमिंटन भी खेलता हूं। अब जब समय मिलता है तो ये दोनों खेल खेलता हूं। मैं कालेज के दिनों में वर्ष 1984
से 1986 तक सांस्कृतिक सचिव रहने का मौका मिला था। तब मैं स्वयं भी नाटकों एवं वाद-विवाद प्रतियोगिता में भाग लिया करता था।

सवाल- आप जब किशोर अवस्था में थे, तब एक बार बिना बताये नाव में बैठकर
चले गये थे, और वह तेज बहाव में फंस गई थी?
जवाब- हां, मैं छपरा (बिहार) का रहने वाला हूं, हम जहां रहते थे वह घर 200-250 वर्ष पुराना घर था। घर के ठीक पीछे ही सरयू नदी बहती थी। दादाजी, ने वहां एक नांव रखी हुई थी, लेकिन हमें इस बात की सख्त मनाई थी कि हम उसमें बिना नाविक के ना बैठे। एक बार सरयू तेज बहाव पर थी, हमें तैरना तो आता था। सोचा की नाव में घूम आते हैं। बिना नाविक के ही उसमें बैठ गये। अचानक नाव अनियंत्रित हो गयी। मेरी उम्र उस समय 12-14 वर्ष रही होगी। मैं और भाई दोनों घबरा गये। जोर-जोर से चिल्लाने लगे। आंधे घंटे तक तेज बहाव में बहते रहे। फिर कुछ नाव वालों ने बहाव में ही कूद कर हमें बचाया। हम तेज बहाव से घबरा गये थे, आज भी वह लम्हा याद आता हैं।

सवाल- आपको किस तरह की पुस्तकें पढ़ने का शौक हैं?
जवाब- मुझे बचपन से ही पे्रमचंद की कहानियां पढ़ने का शौक रहा। उनकी कहानियां जितनी बार पढ़ों अच्छा लगता हैं। मैं उनके भारतीय परिवेश में ग्रामीण चित्रण से काफी प्रभावित भी रहा। रवीन्द्रनाथ टैगोर, गांधीजी को भी पढ़ा। फण्डीश्वर नाथ को पढ़ना भी पसंद हैं। अंगे्रजी लेखकों में अमिताभ घोष और एटलस श्रण्ड एण्ड अ‍ेर्ट्नड को पढ़ता हूं।

सवाल- आपको लोग इमली कृष्ण कहते हैं?
जवाब- मुझे आठ वर्ष तक कलेक्टर रहने का मौका मिला। बस्तर में 4 वर्ष तक कलेक्टर रहा। ये जीवन के सबसे अहम् दिन थे। आदिवासी क्षेत्र था। जब मैं वहां कलेक्टर था, उस जिले का क्षेत्रफल 441 कि.मी. था। अबूझमाड जाने में तो 3-4 दिन लग जाते थे। जिले में वनोपज का एक हजार करोड़ का व्यवसाय होता था। लेकिन वनोपज संग्रहण करने वाले आदिवासियों को इसका लाभ कम ही मिलता था। लगभग पांच लाख आदिवासी इससे जुडेÞ हुए थे। मैंने उनके 2 हजार स्व-सहायता समूह बनवाये और उन्हें सिर्फ इमली के संग्रहण से ही 500 से 600 करोड़ का व्यवसाय करवाया। मैंने अमूल माडल को ध्यान में रखते हुए संग्रहण, वितरण एवं प्रसंस्करण की योजना बनवाई। यह कार्य जिला स्तर पर तीन वर्ष तक अच्छा चला। वन-धन योजना के अंतर्गत इस समूहों ने साड़ी, मसाले, साबुन, मंजन आदि के निर्माण का कार्य किया। वहां इन समूहों का माल ही स्थानीय बाजा में बिकता रहा। पांच लाख आदिवासियों की आय 7 से 8 गुना बढ़ गयी थी। जो इमली 50 से 60 पैसे और एक-डेढ़ रुपये में व्यापारी खरीद लेते थे, उसकी कीमत आदिवासियों को 6 से 8 रुपये तक मिलने लगी थी। मेरे इन प्रयासों को कमजोर करने की शिकायत प्रभावित लोगों ने तत्कालीन कमिश्नर आईडी खत्री को की। एक दिन कमिश्नर ने बिना बताये ग्रामीण बाजारों का निरीक्षण किया। वहां के ग्रामीणों से इमली की खरीद और बिक्री पर सवाल किये। जैसे ही लोगों को पता लगा। वहां काफी संख्या में लोग एकत्र हो
गये। कमिश्नर ने जब एक अनपढ़ वृद्ध महिला से पूछा क्या लाभ होता हैं? तो उसने जवाब दिया- ‘‘पहले अंजूरी भर मिलता था, अब बांह भर मिलता हैं ’’। धीरे-धीरे यह योजना पापुलर हुई और राज्य भर में लागू की गयी।

आईएएस प्रवीर कृष्ण की प्रोफाइल
जन्म- बिहार में 7 दिसम्बर 1961, शिक्षा- एमए अर्थशास्त्र, आईएएस में सिलेक्शन 1987, पहली पदस्थापना जून 1988 में एसिस्टेंट कलेक्टर रायपुर, सितम्बर 1989 में एसडीओ महासंमुद बने। अगस्त 1991 में डीआरडीए जबलपुर पदस्थ किये गये। वर्ष 1993 में जबलपुर के एडिशनल कलेक्टर बनाये गये। कलेक्टर सरगुजा के रूप में 6 जून 1994 को पहली पदस्थापना हुई। वर्ष 1997 में बस्तर कलेक्टर बने। यहां से जनवरी 2001 में एमडी सिविल सप्लाई कार्पोंरेशन के रूप में पदस्थ किये गये। वर्ष 2004 में संचालक आरसीवीपी
नरोन्हा अकादमी में आ गये। वर्ष 2004 में डॉयरेक्टर, केबिनेट सेक्रेटियट नई दिल्ली और फिर मई 2007 में संयुक्त सचिव स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय पदस्थ किये गये। प्रवीर कृष्ण को जनवरी 2009 में स्पेशल आॅफिसर कॉमन वेल्थ गेम्स की जिम्मेदारी दी गयी। वर्ष 2012 में केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति से वापस आए और वर्तमान में प्रमुख सचिव, लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के रूप में कार्यरत हैं।

सोमवार, 3 सितंबर 2012

टीचर की एक सीख ने बदल दिया जीवन का नजरिया

बचपन में सिर्फ एक बार होमवर्क नहीं करने पर टीचर ने हाथ में छड़ी मारी
थी। टीचर की उस एक बार की सजा के बाद आज तक मैंने कभी कोई कार्य विलंब से नहीं किया। चूंकि में एक किसान का बेटा हूं, इसलिए किसानों की समस्याओं  को करीब से जानता हूं। कोशिश करता हूं कि पहली ही विजिट में उसकी समस्या  का निदान कर संकू। जीवन में वैसे तो कई ऐसे वाकये है, जब मैंने किसानों  की मदद की। लेकिन हाल ही के एक वाकये ने मुझे झंझोड़ कर रख दिया था। इस बार हमने 1993 बैच के आईएएस अधिकारी एवं वर्तमान में प्रमुख राजस्व  आयुक्त हीरालाल त्रिवेदी  से चर्चा की। पेश है राजेन्द्र धनोतिया द्वारा हीरालाल त्रिवेदी से की गयी चर्चा के मुख्य अंश-

सवाल- आप ग्रामीण परिवेश में पले-बढेÞ हुए। आपके शौक क्या हैं?
जवाब- मुझे शुरू से ही मार्निग वॉक, योगा करना पंसद है। खेल में बेडमिंटन, टेबिल टेनिस मेरी पंसद है। लेकिन जब में पढ़ता था, तब एथलिटिक्स  का खिलाड़ी रहा। विश्वविद्यालय स्तर पर 10,000 मीटर की दौड़ में भाग लेता रहा। हायर सेकण्डरी में राज्य स्तरीय कबड्डी प्रतियोगिया में भी भाग लिया था। मुझे रेडियो पर पुराने फिल्मी गीत और गजले सुनना भाता है। विशेषकर मुकेश के गीत सुनता हूं। मुकेशजी द्वारा गाया गया गीत- छुप-छुप छलने में क्या राज है, यू छूप ना सकेगा परमात्मा... मेरा पसंदीदा गीत है।

सवाल- आपने उज्जैन के एक संपन्न कृषक परिवार में जन्म लिया। क्या अब भी
खेती-किसानी कर पाते हैं?

जवाब- हां, मैं मूल से किसान हूं। जब भी भोपाल से बाहर जाता हूं, तो खेतों को निहारता हूं। यह देखता हूं कि फसलों की स्थिति क्या हैं। मेरे परिवार में आज भी किसानी होती हैं। जब वहां रहता हूं तो मजदूरों के साथ
हाथ बंटाता हूं। अच्छा लगता हैं।

सवाल- स्कूली पढ़ाई के दौरान सुना है, आप अपने जूते छुपाकर जाते थे।

जवाब- मैं, ग्राम किलोली जिला उज्जैन में रहता था, वहां कक्षा-4 तक ही स्कूल था। 5 वीं से 8 वीं तक पड़ौस के गांव तक पैदल जाना पड़ता था। पांच कि.मी. दूर स्थित स्कूल में वर्षा के दौरान तेज पानी आता था तो कच्चे
रास्ते में जूते पांव से निकल जाते थे। ऐसे मौके पर कहीं भी झाड़ियों में जूते छुपाकर स्कूल जाते थे।

सवाल- आपको अपनी स्कूल की पढ़ाई का कोई ऐसा वाकया याद है, जिसने आपके जीवन
पर असर डाला हो?

जवाब- मैं, स्कूल में अपवाद स्वरूप ही अनुपस्थित रहता था। वैसे होमवर्क भी पूरा करता रहा। एक बार अंग्रेजी का होमवर्क नहीं कर पाया। यह कक्षा-6 की बात है। तब टीचर ने बतौर सजा मेरे हाथ में छड़ी मारी थी। इसके बाद जीवन में कभी ऐसा मौका नहीं आया। उस एक वाकये के कारण मैं, आज भी कोशिश करता हूं, कि समय पर कार्यालय जाऊं और समय पर ही काम निपटाऊं।

सवाल- आपके घर में अच्छी-खासी खेती थी, फिर आप इस सेवा में कैसे आए?

जवाब- जब मैं प्राइमरी क्लास में था, पिताजी संपन्न किसान थे, लेकिन उनके मित्रों में अन्य व्यवसायों के बड़े लोग शामिल थे। पिताजी की इच्छा थी कि मैं मार्डन खेती करूं या फिर ऐसी सर्विस में जाऊं जहां किसानों का भला कर संकू। कालेज की पढ़ाई के बाद माध्यमिक स्कूल में शिक्षक बन गया। इस बीच मेरे एक दोस्त का पीएस-सी के माध्यम से नायब तहसीलदार में चयन हुआ। उसने मुझे भी प्रेरित किया। मैंने 1979 में पीएस-सी की परीक्षा दी। और मेरा चयन डिप्टी कलेक्टर के रूप में हो गया।  

सवाल- सुना है, जब आप कमिश्नर शहडोल थे, तब एक किसान के पौते ने आपको
अपनी आप बीती सुनाई तो आप काफी विचलित हो गये थे?

जवाब- हां, एक दिन एक व्यक्ति रात्रि में मेरे निवास पर आया। उसने कहा कि मुझे मेरी जमीन की नकल कल सुबह तक नहीं मिली तो मेरा बयाना डूब जाएगा। मैंने उसकी बात सुनी। रात्रि में ही पटवारी को ढूंढ़वाया। उसे निर्देश दिये कि हर हाल में सुबह नकल चाहिए। पटवारी ने सुबह नकल दी। मैंने उस व्यक्ति को बुलाकर उसके हाथ में नकल दिलवाई तो वह रोने लगा था। ऐसे ही जब मैं कमिश्नर शहडोल था, राजस्व प्रकरणों की सुनवाई कर रहा था। एक आदिवासी कृषक की जमीन का मामला था। इस मामले में एसडीएम ने 1980 में निर्णय दिया था। दूसरे पक्षकार ने निगरानी कर स्थगन ले लिया था। प्रकरण 2010 में मेरे सामने आया। 30 वर्ष पुराने प्रकरण के निराकरण में काफी विलंब हो चुका था। सिर्फ पेशियां ही आगे बढ़ती जा रही थी। इस बीच मूल आदिवासी एवं उसके बेटे की मृत्यु हो चुकी थी और उसका पौता पेशी पर आ रहा था। सुनवाई के दौरान जब पौता सामने आया और उसने बताया कि मेरे पिता और उनके पिता दोनों की ही मौत हो चुकी है, आपको जो करना है, वह कर दो, मैं आगे से यहां नहीं आऊगां। यह सुन कर मुझे रोना आ गया था। (श्री त्रिवेदी जब इस संबंध में चर्चा कर रहे, तब भी उनकी आंखों में पानी आ गया) मैंने पीड़ित के कागज देखे और उसके पक्ष में फैसला सुनाया।

सवाल- आपने सेवा के दौरान कौन से प्रमुख नवाचार में भागीदारी की?

जवाब- वैसे तो मुझे शासकीय सेवा के  दौरान कई नवाचारों में भागीदारी का मौका मिला। लेकिन वर्ष 1998-99 में जिला सरकार के कंसप्ट को मूर्तरूप देने में सहभागी बना। इसी दौरान 16 नये जिले बने थे, उसमें स्टाफ की व्यवस्था, कई विभाग के संभागीय कार्यालयों कम किये गये।   इनका स्टाफ जिलों में व्यवस्थित किया। उस दौर में मैराथन काम किया। इसी प्रकार 1999-2000 में मध्यप्रदेश दो भागों मप्र एवं छग के रूप में विभाजित हुआ। तब इसके अधिनियम, नियम, परिपत्र बनाना, स्टाफ का विभाजन जैसे कार्यों की प्रारंभिक तैयारी कर गठित कमेटी तथा मुख्यमंत्री एवं मुख्य सचिव को जानकारी उपलब्ध कराने का कार्य चुनौतिपूर्ण रहा।

आईएएस हीरालाल त्रिवेदी की प्रोफाइल

जन्म- एक मार्च 1953, वर्ष 1979 में एसएएस में चयन, बालाघाट, धार एवं भोपाल में डिप्टी कलेक्टर के रूप में कार्य। त्रिवेदी भिण्ड में एडीएम भी रहे। 1993 में उप सचिव उच्च शिक्षा एवं गृह बने। दिसम्बर 1996 में  नियंत्रक वेट एण्ड मैजरमेंट पदस्थ किये गये। मई 1998 में जीएडी में उप सचिव बनाए गये। सितम्बर 2001 में सीईओ जिला पंचायत होशंगाबाद, सितम्बर  2002 में कलेक्टर शाजापुर, फरवरी 2004 में कलेक्टर मंदसौर के बाद वर्ष 2006 में सचिव राज्य निर्वाचन आयोग और जुलाई 2007 में कलेक्टर सागर बनाये गये। वर्ष 2009 में कमिश्नर सागर संभाग। अगस्त 2010 में कमिश्नर पंचायत एवं सामाजिक न्याय, सितम्बर 2011 में सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास तथा वर्तमान में प्रमुख आयुक्त राजस्व एवं नियंत्रक गर्वमेंट पे्रस के रूप में कार्यरत।