सोमवार, 3 सितंबर 2012

टीचर की एक सीख ने बदल दिया जीवन का नजरिया

बचपन में सिर्फ एक बार होमवर्क नहीं करने पर टीचर ने हाथ में छड़ी मारी
थी। टीचर की उस एक बार की सजा के बाद आज तक मैंने कभी कोई कार्य विलंब से नहीं किया। चूंकि में एक किसान का बेटा हूं, इसलिए किसानों की समस्याओं  को करीब से जानता हूं। कोशिश करता हूं कि पहली ही विजिट में उसकी समस्या  का निदान कर संकू। जीवन में वैसे तो कई ऐसे वाकये है, जब मैंने किसानों  की मदद की। लेकिन हाल ही के एक वाकये ने मुझे झंझोड़ कर रख दिया था। इस बार हमने 1993 बैच के आईएएस अधिकारी एवं वर्तमान में प्रमुख राजस्व  आयुक्त हीरालाल त्रिवेदी  से चर्चा की। पेश है राजेन्द्र धनोतिया द्वारा हीरालाल त्रिवेदी से की गयी चर्चा के मुख्य अंश-

सवाल- आप ग्रामीण परिवेश में पले-बढेÞ हुए। आपके शौक क्या हैं?
जवाब- मुझे शुरू से ही मार्निग वॉक, योगा करना पंसद है। खेल में बेडमिंटन, टेबिल टेनिस मेरी पंसद है। लेकिन जब में पढ़ता था, तब एथलिटिक्स  का खिलाड़ी रहा। विश्वविद्यालय स्तर पर 10,000 मीटर की दौड़ में भाग लेता रहा। हायर सेकण्डरी में राज्य स्तरीय कबड्डी प्रतियोगिया में भी भाग लिया था। मुझे रेडियो पर पुराने फिल्मी गीत और गजले सुनना भाता है। विशेषकर मुकेश के गीत सुनता हूं। मुकेशजी द्वारा गाया गया गीत- छुप-छुप छलने में क्या राज है, यू छूप ना सकेगा परमात्मा... मेरा पसंदीदा गीत है।

सवाल- आपने उज्जैन के एक संपन्न कृषक परिवार में जन्म लिया। क्या अब भी
खेती-किसानी कर पाते हैं?

जवाब- हां, मैं मूल से किसान हूं। जब भी भोपाल से बाहर जाता हूं, तो खेतों को निहारता हूं। यह देखता हूं कि फसलों की स्थिति क्या हैं। मेरे परिवार में आज भी किसानी होती हैं। जब वहां रहता हूं तो मजदूरों के साथ
हाथ बंटाता हूं। अच्छा लगता हैं।

सवाल- स्कूली पढ़ाई के दौरान सुना है, आप अपने जूते छुपाकर जाते थे।

जवाब- मैं, ग्राम किलोली जिला उज्जैन में रहता था, वहां कक्षा-4 तक ही स्कूल था। 5 वीं से 8 वीं तक पड़ौस के गांव तक पैदल जाना पड़ता था। पांच कि.मी. दूर स्थित स्कूल में वर्षा के दौरान तेज पानी आता था तो कच्चे
रास्ते में जूते पांव से निकल जाते थे। ऐसे मौके पर कहीं भी झाड़ियों में जूते छुपाकर स्कूल जाते थे।

सवाल- आपको अपनी स्कूल की पढ़ाई का कोई ऐसा वाकया याद है, जिसने आपके जीवन
पर असर डाला हो?

जवाब- मैं, स्कूल में अपवाद स्वरूप ही अनुपस्थित रहता था। वैसे होमवर्क भी पूरा करता रहा। एक बार अंग्रेजी का होमवर्क नहीं कर पाया। यह कक्षा-6 की बात है। तब टीचर ने बतौर सजा मेरे हाथ में छड़ी मारी थी। इसके बाद जीवन में कभी ऐसा मौका नहीं आया। उस एक वाकये के कारण मैं, आज भी कोशिश करता हूं, कि समय पर कार्यालय जाऊं और समय पर ही काम निपटाऊं।

सवाल- आपके घर में अच्छी-खासी खेती थी, फिर आप इस सेवा में कैसे आए?

जवाब- जब मैं प्राइमरी क्लास में था, पिताजी संपन्न किसान थे, लेकिन उनके मित्रों में अन्य व्यवसायों के बड़े लोग शामिल थे। पिताजी की इच्छा थी कि मैं मार्डन खेती करूं या फिर ऐसी सर्विस में जाऊं जहां किसानों का भला कर संकू। कालेज की पढ़ाई के बाद माध्यमिक स्कूल में शिक्षक बन गया। इस बीच मेरे एक दोस्त का पीएस-सी के माध्यम से नायब तहसीलदार में चयन हुआ। उसने मुझे भी प्रेरित किया। मैंने 1979 में पीएस-सी की परीक्षा दी। और मेरा चयन डिप्टी कलेक्टर के रूप में हो गया।  

सवाल- सुना है, जब आप कमिश्नर शहडोल थे, तब एक किसान के पौते ने आपको
अपनी आप बीती सुनाई तो आप काफी विचलित हो गये थे?

जवाब- हां, एक दिन एक व्यक्ति रात्रि में मेरे निवास पर आया। उसने कहा कि मुझे मेरी जमीन की नकल कल सुबह तक नहीं मिली तो मेरा बयाना डूब जाएगा। मैंने उसकी बात सुनी। रात्रि में ही पटवारी को ढूंढ़वाया। उसे निर्देश दिये कि हर हाल में सुबह नकल चाहिए। पटवारी ने सुबह नकल दी। मैंने उस व्यक्ति को बुलाकर उसके हाथ में नकल दिलवाई तो वह रोने लगा था। ऐसे ही जब मैं कमिश्नर शहडोल था, राजस्व प्रकरणों की सुनवाई कर रहा था। एक आदिवासी कृषक की जमीन का मामला था। इस मामले में एसडीएम ने 1980 में निर्णय दिया था। दूसरे पक्षकार ने निगरानी कर स्थगन ले लिया था। प्रकरण 2010 में मेरे सामने आया। 30 वर्ष पुराने प्रकरण के निराकरण में काफी विलंब हो चुका था। सिर्फ पेशियां ही आगे बढ़ती जा रही थी। इस बीच मूल आदिवासी एवं उसके बेटे की मृत्यु हो चुकी थी और उसका पौता पेशी पर आ रहा था। सुनवाई के दौरान जब पौता सामने आया और उसने बताया कि मेरे पिता और उनके पिता दोनों की ही मौत हो चुकी है, आपको जो करना है, वह कर दो, मैं आगे से यहां नहीं आऊगां। यह सुन कर मुझे रोना आ गया था। (श्री त्रिवेदी जब इस संबंध में चर्चा कर रहे, तब भी उनकी आंखों में पानी आ गया) मैंने पीड़ित के कागज देखे और उसके पक्ष में फैसला सुनाया।

सवाल- आपने सेवा के दौरान कौन से प्रमुख नवाचार में भागीदारी की?

जवाब- वैसे तो मुझे शासकीय सेवा के  दौरान कई नवाचारों में भागीदारी का मौका मिला। लेकिन वर्ष 1998-99 में जिला सरकार के कंसप्ट को मूर्तरूप देने में सहभागी बना। इसी दौरान 16 नये जिले बने थे, उसमें स्टाफ की व्यवस्था, कई विभाग के संभागीय कार्यालयों कम किये गये।   इनका स्टाफ जिलों में व्यवस्थित किया। उस दौर में मैराथन काम किया। इसी प्रकार 1999-2000 में मध्यप्रदेश दो भागों मप्र एवं छग के रूप में विभाजित हुआ। तब इसके अधिनियम, नियम, परिपत्र बनाना, स्टाफ का विभाजन जैसे कार्यों की प्रारंभिक तैयारी कर गठित कमेटी तथा मुख्यमंत्री एवं मुख्य सचिव को जानकारी उपलब्ध कराने का कार्य चुनौतिपूर्ण रहा।

आईएएस हीरालाल त्रिवेदी की प्रोफाइल

जन्म- एक मार्च 1953, वर्ष 1979 में एसएएस में चयन, बालाघाट, धार एवं भोपाल में डिप्टी कलेक्टर के रूप में कार्य। त्रिवेदी भिण्ड में एडीएम भी रहे। 1993 में उप सचिव उच्च शिक्षा एवं गृह बने। दिसम्बर 1996 में  नियंत्रक वेट एण्ड मैजरमेंट पदस्थ किये गये। मई 1998 में जीएडी में उप सचिव बनाए गये। सितम्बर 2001 में सीईओ जिला पंचायत होशंगाबाद, सितम्बर  2002 में कलेक्टर शाजापुर, फरवरी 2004 में कलेक्टर मंदसौर के बाद वर्ष 2006 में सचिव राज्य निर्वाचन आयोग और जुलाई 2007 में कलेक्टर सागर बनाये गये। वर्ष 2009 में कमिश्नर सागर संभाग। अगस्त 2010 में कमिश्नर पंचायत एवं सामाजिक न्याय, सितम्बर 2011 में सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास तथा वर्तमान में प्रमुख आयुक्त राजस्व एवं नियंत्रक गर्वमेंट पे्रस के रूप में कार्यरत।

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