मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

यूनिसेफ ने सोशल मीडिया एवं वेबसाइटों के माध्‍यम से स्‍कूल शिक्षा सुधार का बीड़ा उठाया

23 अप्रैल को मैं पंचमढ़ी गया था, यहां यूनिसेफ की ओर से एक कार्यशाला में उपस्थित होने का मौका मिला। आरटीई लागू होने के बाद मध्‍यप्रदेश की स्‍कूली शिक्षा की स्थिति को जानने का मौका मिला। यू-डाईस की रिपोर्ट को इस कार्यशाला में रखा गया था। इस रिपोर्ट के आंकड़ों ने राज्‍य की स्‍कूल शिक्षा की हकीकत को निकट से देखने का मौका मिला। इस पर एक संक्षिप्‍त रिपोर्ट मेरे द्वारा संचालित की जा रही वेबसाइट www.rajkaaj.com पर दी गई है। इस रिपोर्ट को ब्‍लाॅगर पांचवीं मंजिल पर भी शेयर कर रहा हूं।


मध्‍यप्रदेश की स्‍कूल शिक्षा की स्थिति खास अच्‍छी नहीं है। यह कहा जाए कि शासकीय स्‍कूलों में मूलभूत सुविधाओं का जहां अभाव है, वहीं इस दिशा में शिक्षा का अधिकारी अधिनियम (आरटीई) लागू होने के पांच वर्ष बाद भी हालात अच्‍छे नहीं हैं। यूनिसेफ की मध्‍यप्रदेश इकाई ने मप्र में प्रारंभिक शिक्षा की स्थिति पर राज्‍य प्रोफाइल एकीकृत जिला शिक्षा सूचना प्रणाली (यू-डाईस) वर्ष 2013-14 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए एक कार्यशाला का आयोजन सतपुड़ा की रानी पचमढ़ी में किया। यूनिसेफ ने सोशल मीडिया एवं वेबसाइटों के बढ़ते प्रभाव को आत्‍मसात करते हुए इसके माध्‍यम से इस दिशा में काम करने का फैसला किया है। यूनिसेफ द्वारा आयोजित सोशल मीडिया एवं वेबसाइट तथा स्‍कूल शिक्षा विषय पर आयोजित कार्यशाला में चर्चा के दौरान यह निर्णय भी लिया है कि शीघ्र ही एक ऐसा फोरम बनाया जाएगा, जिसमें इन माध्‍यमों से स्‍कूल शिक्षा की खांमियों के साथ ही इस दिशा में किये जा रहे प्रयासों का प्रचार-प्रसार किया जाएगा।

कार्यशाला की ‍शुरुआत करते हएु मध्‍यप्रदेश यूनिसेफ के प्रमुख ट्रेवर क्लार्क ने कहा है कि सोशल मीडिया अब ट्रेडिशनल मीडिया की तरह लिया जा रहा है और इस मीडिया का उपयोग शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए बेहतरीन तरीके से किया जा सकता है। क्‍लार्क ने कहा कि अब बात शिक्षा के अधिकार के साथ ही सीखने के अधिकार की होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि मीडिया हमेशा यूनिसेफ का सशक्‍त सहयोगी रहा है। क्‍लार्क ने कहा कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम ( आरटीई ) वर्ष 2010 बनने के बाद इस दिशा में काम हुआ है, लेकिन अभी भी इस दिशा में काफी काम हाेना बाकि है। उन्‍होंने कहा कि वेबसाइट एवं सोशल मीडिया के बढ़ते चलन का स्‍कूल शिक्षा क्षेत्र में बदलाव आया है। वाट्सएप भी इसका अच्‍छा माध्‍यम बना है। क्‍लार्क ने इन माध्‍यमों से स्‍कूल शिक्षा क्षेत्र में जोर दिया।

मप्र सूनिसेफ के शिक्षा विशेषज्ञ एफए जामी ने एमपी में शिक्षा के स्तर और जरूरी आधारभूत संरचना पर तैयार प्रेजेंटेशन में बताया कि मध्‍यप्रदेश में आरटीई लागू होने के बाद शिक्षा के हालात क्‍या हैं। जामी ने यू-डाईस की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि मप्र में 5,295 स्‍कूलों में एक भी शिक्षक नहीं हैं। इनमें सरकारी स्‍कूलों की संख्‍या 4,662 हैं। यही नहीं 17,972 शासकीय स्‍कूलों में मात्र एक शिक्षक हैं। उन्‍होंने बताया कि रीवा के स्‍कूलों में कम बच्‍चें आते है। इसी प्रकार सिंगरोली में शिक्षकों की संख्‍या काफी कम है। प्रदेश में 6 हजार 847 ऐसे स्‍कूल है, जहां छात्र-छात्राअों की संख्‍या 20 से भी कम हैं। ऐसे स्‍कूलों में सर्वाधिम रीवा के 460 स्‍कूल शामिल हैं। जामी ने बताया कि वर्ष 2013 में प्रदेश के 2012 स्‍कूलों में विद्यार्थियों की संख्‍या 10 से भी कम थी। वर्ष 2013-14 में 4 लाख 75 हजार बच्‍चों ने स्‍कूल आना छोड़ दिया। इनमें प्राथमि स्‍कूलों 4 लाख 20 हजार बच्‍चें शामिल हैं।

कम्युनिकेशन स्पेशलिस्ट, यूनिसेफ, इंडिया की मारिया फर्नांडीज ने बच्चों को उनके शिक्षा अधिकार दिलाने के लिए सो‍शल मीडिया एवं वेबसाइट की उपयोगिता बताते हुए कहा कि यूनिसेफ ने अपनी कम्‍युनिकेशन स्‍टेटजी बदली है। उन्‍होंने कहा कि इंटरनेट के माध्‍यम से वेबसाइट एवं सोशल मीडिया ने सामाजिक क्रांति ला दी है। इसी कारण अब यूनिसेफ ने भी वेबसाइट एवं सोशल मीडिया के प्‍लेटफार्म का इस्‍तेमाल करने का निर्णय लिया है। उन्‍होंने कहा कि हम 15 से 34 वर्ष के लोगों को टारगेट करना चाहते है।

वरिष्‍ठ पत्रकार गिरीश उपाध्याय ने 'सोशल मीडिया लैंडस्केप इन एमपी एंड हाऊ दे कैन कंट्रीब्यूट इन चिल्ड्रन्स एजुकेशन' पर अपने महत्‍ती विचार रखे। यूनिसेफ, मध्यप्रदेश के कम्युनिकेशन स्‍पेसलिस्‍ट अनिल गुलाटी ने भी सोशल मीडिया एवं वेबसाइट के बढ़ते प्रभाव पर अपनी राय रखी। कार्यशाला में भाग ले रहे पत्रकारों एवं वेबसाइट संचालन कर रहे अनेक लोगों ने शिक्षा के क्षेत्र में सोशल मीडिया एवं वेबसाइट के माध्‍यम से अपनी भूमिका निर्वहन पर विचार रखे।

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