सोमवार, 27 अगस्त 2012

ग्रामीण परिवेश से लगाव सेवा में भी आ रहा काम


ग्राम, ग्रामीण और शहरी गरीब की चिंता मन में शुरू से ही रही। मुझे
ग्रामीण परिवेश में रहना और घूमना दोनों ही पंसद रहा। यही वजह रही कि
ग्रामीणों की समस्या और उनके निदान के लिए सोचता था। आज जबकि प्रशासनिक
पदों पर रहने का मौका मिल रहा है तो उनकी समस्याएं दिमाग में रहती है, और
उसके लिए सोचता हूं। 1992 बैच के आईएएस अधिकारी डॉ. रवीन्द्र पस्तौर का
जन्म मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ में हुआ। एमए, एमफिल और पीएचडी (रीजनल
प्लानिंग) करने के बाद राज्य प्रशासनिक सेवा में चयन हुआ। वर्ष 1992 में
आईएएस में पदोन्नत हो गये। पस्तौर को शुरू से ही ग्रामीण क्षेत्रों या
उनसे जुड़े विभागों में काम करने का मौका मिला। यही कारण है कि उनका
ग्रामीण क्षेत्रों से लगाव शासकीय सेवा में भी काम आ रहा हैं। पेश है
एनआरएचएम के मिशन डॉयरेक्टर डॉ. पस्तौर की हमारे विशेष संवाददाता
राजेन्द्र धनोतिया से हुई चर्चा के मुख्य अंश-

सवाल- आपके प्रमुख शौक के बारे में बतायें? खेलने में क्या पंसद हैं।
जवाब- मुझे पढ़ना, घूमना और फोटोग्राफी का शौक शुरू से ही रहा। ग्रामीण
परिवेश में घूमना ज्यादा पंसद हैं। चूंकि मैं मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ का
रहने वाला हूं। और प्रदेश की जानकारी भी काफी रखता हूं। ग्रामीण
क्षेत्रों के एतिहासिक स्थलों को काफी करीब से देखा। यही नहीं ग्रामीण और
गरीब दोनों को काफी निकट से जानता हूं। खेल में मेरी रूचि शुरू से ही कम
रही। हां, जब वक्त मिलता है, तब बेडमिंटन खेलता हूं।
सवाल- पढ़ने में क्या पंसद हैं?
जवाब- देश-प्रदेश सहित अन्य देशों की एकानॉमी से जुड़ी किताबें पढ़ने का
शौक है। सेल्फ एम्पलायमेंट, आजीविका से जुडेÞ विषयों पर अच्छी किताबें
ढूढ़कर पढ़ता हूं। वर्तमान में पब्लिक हैल्थ मेनेजमेंट पढ़ रहा हूं। जब
कॉलेज में था, तब ऐतिहासिक नॉवेल, सोशल इश्यू पढ़ने में विशेष रूची थी।
वैसे मेरी रूची पब्लिक हेल्थ में अन्य प्रदेशों एवं विदशों में क्या हो
रहा यह जानने की उत्सुकता रहती है, इसलिए इससे जुडेÞ विषय पर जानकारी
एकत्र करता रहता हंू।
सवाल- आप प्रशासनिक सेवा में है, इसमें आपका लक्ष्य क्या रहता हैं?
जवाब- जब भी ग्रामीण क्षेत्रों में काम का मौका मिला। वहां के लोगों के
साथ तालमेल बैठाकर ग्रामीण एवं शहरी गरीबों की आजीविका को समुदाय से
जोड़ते हुए कैसे काम किया जाए? मेरे मन में हमेशा रहता है। फिलहाल समुदाय
आधारित सेवाओं के प्रदाय के लिए क्या किया जाए यह मेरा लक्ष्य हैं।
स्व-सहायता समूह बनाकर गतिविधि आधारित कार्य की योजना पर काम कर रहा हूं।
इसमें एक जैसे तरीके से काम करने वाले लोगों को एकत्र कर (वस्तुएं
निर्मित करने वाले और एक जैसी सेवाएं देने वाले) उनके समूह बनाना और एक
जैसी गुणवत्ता वाला प्रतिस्पर्धात्मक बाजार तैयार करने पर जोर हैं।
सवाल- जब आप कलेक्टर रहे, तब आपने नवाचार किये होंगे?
जवाब- मेरा लक्ष्य शुरू से ही समुदाय आधारित स्व-रोजगार की स्थिति
निर्मित करना रहा। जहां भी रहा वहां पहले जरूरतमंदों का समूह बनवाया। फिर
बडेÞ स्तर पर सोसायटी। ये सोसायटी मध्यप्रदेश स्वायत्त सहकारी अधिनियम के
अंतर्गत बनाई गयी। इन सोसायटियों में बीज, फल, कपड़ा उत्पादन, मुर्गी पालन
आदि कार्य शामिल रहते हैं। कंपनी एक्ट में उत्पादक कंपनी भी बनवाई। जो
विषय विशेषज्ञ संंस्थाएं थी उनसे लम्बी अवधि का अनुबंध कराया। ताकि उनके
साथ ये सोसायटियां काम कर सके।
जब कलेक्टर पन्ना था, तब स्व-रोजगार के लिए कार्य किया। ग्राम स्वराज,
ग्राम सभा को सक्रिय करने का काम किया ताकि वह ग्राम स्तर पर प्रशासनिक
क्रियान्वयन में भागीदारी कर सके। समुदाय को जोड़ने के लिए उसके प्रशिक्षण
पर हमेशा ध्यान दिया। क्योंकि इससे उनकी कार्यक्षमता विकसित हो। यही वजह
थी कि पंचायतों में काफी सक्रियता रही। मैंने वहां ग्राम स्वराज संस्थान
भी बनाया था। चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय से इसमें सहयोग लिया।
सवाल- प्रशासनिक क्षेत्र में काम करते समय वास्तविक खुशी कब मिलती हैं?
जवाब- मैंने आपको बताया कि मेरी रूचि शुरू से ही ग्राम, ग्रामीण और शहरी
गरीब की समस्या में रही। खासकर मांग आधारित बातों का निदान करने पर खुशी
मिलती हैं।
सवाल- प्रशासनिक क्षेत्र में काम करने में किस तरह का रास्ता अपनाते हैं?
जवाब- जब भी किसी नये पद पर जाता हूं, वहां की योजनाओं को समझता हूं, फिर
क्षेत्र को समझता हूं। जिन लोगों के लिए योजना बनाई गयी है, उनसे संपर्क
करता हूं। इससे योजना क्रियान्वयन में आसानी होती है, और हितग्राही को
लाभ भी मिलता हैं।

डॉ. रवीन्द्र पस्तौर की प्रोफाइल
जन्म- टीकमगढ़ में 8 मार्च 1957, आईएएस में पदोन्नति 1992, आईएएस में
पदोन्नति के बाद पहली पोस्टिंग उप सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास, वर्ष
1998 में मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत तथा एडिशनल कलेक्टर
(विकास) बने। इसके पूर्व भी भोपाल में लम्बे समय तक राज्य प्रशासनिक सेवा
में रहते हुए कलेक्ट्रट में कार्य किया। 31 दिसम्बर 1998 में मप्र स्टेट
एग्रीकल्चर मार्केटिंग बोर्ड में एडिशनल डॉयरेक्टर पदस्थ किये गये। 11
जुलाई 2001 को पन्ना कलेक्टर के रूप में उनकी पदस्थापना हुई। दिसम्बर
2003 में उप सचिव मुख्यमंत्री कार्यालय के साथ ही उन्हें अतिरिक्त रूप से
प्रोजेक्ट आॅफिसर डीपीआईपी का कार्य भी सौंपा गया। जून   2004 में पस्तौर
को प्रोजेक्ट को-आर्डिनेटर डीपीआईपी और कार्यपालक निदेशक एमपी रोजगार
निर्मन बोर्ड भोपाल पदस्थ किया गया। जुलाई 2009 को रीवा कमिश्नर के पद पर
पदस्थ किये गये। यहां से उन्हें जबलपुर कमिश्नर बनाकर भेजा गया। वर्तमान
में मिशन डॉयरेक्टर एनआरएचएम भोपाल के रूप में कार्यरत।

शनिवार, 25 अगस्त 2012

गैर राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों को मिल सकता है, एक मौका

राजेन्द्र धनोतिया, भोपाल
गैर राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को सिलेक्शन के माध्यम से आईएएस में आने का एक मौका और मिल जाए, इसके प्रयास इस बार तेज हो गए हैं। इसके पीछे मुख्य कारण मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं मुख्य सचिव आर. परशुराम की रुचि होना है। फिलहाल इस संबंध राज्य प्रशासनिक सेवा (एसएएस) के दो अधिकारियों द्वारा कैट में लगाई गयी याचिका के कारण किसी भी प्रकार का निर्णय नहीं हो पा रहा है। उधर,  एसएएस से आईएएस के लिए वर्ष 2012 की रिक्तियों के निर्धारण की जानकारी के साथ सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव की केंद्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय में हाल ही में बैठक हो चुकी है, लेकिन निर्णय की स्थिति अभी भी नहीं बनी है।
गैर राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को वर्ष 2006 से आईएएस में सिलेक्शन का इंतजार है। पहले तो इन सेवाओं के अधिकारियों की आपसी शिकायतों के कारण ही यह मामला उलझता रहा। गत वर्ष भी इस संबंध में प्रयास हुए, तब एक अधिकारी की शिकायत के कारण ऐन मौके पर साक्षात्कार की तिथि तय नहीं हो पाई। इस वर्ष मुख्यमंत्री एवं मुख्य सचिव की रुचि के कारण इस दिशा में कार्यवाही तेजी से आगे बढ़ ही रही थी कि इस बीच एसएएस के दो अधिकारी डॉ. रविकांत एवं श्रीमती शशिकला खत्री ने कैट में याचिका लगा दी। इसकी सुनवाई 29 अगस्त को होना है।
गैर राज्य प्रशासनिक सेवा से आईएएस में सिलेक्शन के पीछे मुख्यमंत्री की रुचि उनके एक सहपाठी रहे अधिकारी के कारण बनी हुई हैं। इसी प्रकार मुख्य सचिव जब अपर मुख्य सचिव ग्रामीण विकास रहे थे, तब उन्होंने ग्रामीण विकास में योगदान दे रहे कुछ अधिकारियों की परफार्मेस देखी थी। बताते हैं कि उनकी इच्छा इनमें से एक-दो अधिकारियों को आईएएस में लाने की है। सिलेक्शन के पक्षधरों का कहना है कि इस संबंध में अन्य प्रदेशों में तो मुख्यमंत्री सीधे सिलेक्शन के लिए सिफारिश कर देते हैं। मप्र में तो इसके लिए निर्धारित प्रक्रिया अपनाने में ही लंबा समय निकल जाता है। पदों के लिए गणना का भी तरीका है। वैसे पदों का निर्धारण राज्य सरकार सीधे भी कर सकती है। यह राज्यों की परिस्थितियों पर निर्भर करता है कि वह कितने पद सिलेक्शन से भरना चाहता है, क्योंकि अन्य सेवा से आईएएस में सिलेक्शन के लिए अधिकारियों की विशेषज्ञता के लाभ दर्शाना होते हैं। पदों की गणना भी राज्य के विवेकाधीन है।
एसएएस का भी बढ़ रहा इंतजार
केंद्र से तीन वर्ष की रिक्तियां निर्धारण के लिए राज्य को लिखने के बाद इसकी तैयारी भी कर ली गयी और चाही गयी जानकारी केंद्र को भेज दी गयी थी। इसके बाद केंद्र ने रिक्तियों के निर्धारण के लिए जीएडी के अधिकारी को 23 अगस्त को दिल्ली बुलाया। सूत्रों ने बताया कि यह बैठक हो गयी है, लेकिन रिक्तियों के संबंध में अभी किसी अंतिम निर्णय की स्थिति नहीं हैं। कहा जा रहा है कि यदि तीन वर्ष की रिक्तियों की स्वीकृति मिलती है तो कुल 26 एसएएस अधिकारियों को आईएएस में पदोन्नत का मौका मिल सकेगा।
वर्ष 2010 में 8 पद, वर्ष 2011 में 11 पद (इस वर्ष में वैसे 14 पदों की बात भी इसके पूर्व कही जाती रही है, लेकिन संभवत: अब गणना के बाद 11 पद ही निकल पा रहे हैं।) तथा केंद्र के सुझाव पर वर्ष 2012 के पद भी रिक्तियां निर्धारण में शामिल कर लिए जाते हैं, तो इस वर्ष के 7 पद इसमें शामिल हो जाएंगे।
वैसे मप्र कैडर के रिव्यू में मिले पदों की वर्ष 2011 एवं 2012 में रिक्तियों का स्पष्ट निर्धारण भी होना है। यही नहीं पूर्व की एक डीपीसी के पचड़े में फंसा पद भी डीपीसी की तारीख तय करने के बीच अब तक अडंÞगा लगाए हुए है। यूपीएससी के निर्देश पर ही वर्ष 2011 में वर्ष 2010 एवं 2011 में रिक्त पदों एवं कैडर रिव्यू में मिले पदों की रिक्तियों को निकाल कर डीपीसी करने का निर्णय लिया गया था। एसएएस के अधिकारी मूलचंद वर्मा मामले का निर्णय भी अभी तक नहीं हो सका है।
यूं हुआ विलंब
एसएएस के अधिकारियों को आईएएस में पदोन्नति के लिए वर्ष 2010 में 8 पदों (रिक्तियां निर्धारण) की स्वीकृति मिली है। चूंकि वर्ष 2009 की सिलेक्ट लिस्ट की प्रभावशीलता दिसंबर 2011 तक थी, इसलिए वर्ष 2010 के रिक्त पदों के लिए डीपीसी नहीं हो सकी थी। जब जीएडी ने यूपीएससी को वर्ष 2010 की डीपीसी का प्रस्ताव भेजा था, तो यूपीएससी ने वर्ष 2010 एवं 2011 की डीपीसी एक साथ करने का सुझाव दिया। जीएडी भी इससे सहमत हो गया। उसने यूपीएस-सी के प्रस्ताव को मानकर इसकी तैयारी शुरू कर दी।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2010 की रिक्तियों पर डीपीसी करने पर उसकी सिलेक्ट लिस्ट की प्रभावशीलता 31 दिसंबर 2012 तक रहेगी। ऐसे में एक वर्ष की डीपीसी करने पर वर्ष 2011 की रिक्तियों के लिए डीपीसी नहीं की जा सकती थी। जीएडी ने वर्ष 2011 की रिक्तियों के निर्धारण का प्रस्ताव भी यूपीएससी को भेजा दिया था। वहां से डीपीसी के लिए पत्र आने के पूर्व ही वर्ष 2012 की रिक्तियां भी शामिल करने का पत्र आ गया। इसको लेकर हाल ही में बैठक भी हो गयी, लेकिन फिलहाल मामला आगे नहीं बढ़ सका।